Friday 9 August 2013


यह नश्वर संसार बावरे कौन यहाँ रहने वाला|
किससे कहें हृदय की पीड़ा कौन भला सुनने वाला|


हद से बढकर चाहा लेकिन मन मंदिर में बस न सके|
लिखने को तो बहुत लिखा पर अफसाना तुम पढ न सके|
हवा वही है, झील वही है, नीर वही है, चाँद वही,
प्रेम गंग की धार बहाकर गंगोत्री तुम बन न सके|
जीवन भर हम रहे परखते लेकिन परख नही पाए,
सबकी अलग-अलग हैं राहें कौन साथ चलने वाला||
किससे कहें हृदय की पीड़ा……..


रंग सँवरने की खातिर चित्रों का एक बसेरा हो |
चित्रों को आयाम मिले जब कैनवास का डेरा हो|
ज्यों जहाज का उड़ता पंछी फिर जहाज पर आए,

मन बैरागी तन अनुरागी क्या तेरा क्या मेरा हो|
बिना दृढ़ संकल्प जगत में किसे भला आधार मिला|
मुरझा गए सुमन उपवन के कौन भला चुनने वाला|
किससे कहें हृदय की पीड़ा……..


इस फानी दुनिया में कहीं अपना वजूद न खो जाए|
व्याकुल मन की डगमग नौका कौन किनारे ले जाए|
नदियाँ मुक्त हुआ करती हैं सागर में मिल जाने पर,
ठहरी हुई नदी को आखिर कौन सिंधु तक पहुंचाए|
यूं तो जीवन चक्र अहर्निश रहता है गतिमान मगर,
घाटों के पडाव ‘मतवाला’ कौन भला रुकने वाला||
किससे कहें हृदय की पीड़ा……..
रचना:- राजीव मतवाला
प्रकाशित:- ‘स्वप्न के गाँव में’ से

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