मतवाला झूट पे बताओ क्या लिखूं कविता|
जो
है यथार्थ वास्तव में दीखता नहीं||
-०-
घंटो
में चाहते थे मिनटों में बँट गए|
आँख
है सलामत मगर दीखता नहीं||
-०-
अब
अन्धकार से चिराग डरने लगा है|
सब
स्वार्थ में परमार्थ कहीं दीखता नहीं||
-०-
दुनिया
की ठोकरे मिलती रही हमें|
नैनों
में लिए प्रेम कोई दीखता नहीं||
-०-
जिसको
भी सहज सरल सरस देखने लगा|
वह
बन गया कठोर तरल दीखता नहीं||
-०-
दिनरात
लुट रहा हूँ लोग लूट रहे हैं|
बचने
का कारगर उपाय दीखता नहीं||
राजीव मतवाला रचित पुस्तक:- ‘ गजल वाटिका ‘ से
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