Sunday 11 August 2013

ले गई मेरी....

ले गई मेरी हर खुशी आँखें|

मेरे बारे में सोचती आँखें||


 

उसकी आँखों में आँखें मत डालो,

छीन लेती हैं रोशनी आँखें|

 

मेरी आँखों का सच न पड़ जाए,

उसकी खत की एबारती आँखें|

 

सुर्ख होते हैं किसके लान के फूल,

खून रोती है कौन सी आँखें|

 

शाम बुनती है रेशमी सपने,

सुबह करती है ख़ुदकुशी आँखें|

 

एक मुद्दत के बाद उभरा तो,

मुन्तजिर फिर मिली वही आँखें|

 

मेरा बातिन मुझे डराता है,

बंद करते ही जाहिरी आँखें|

 

कौन हीरा है कौन पत्थर है,

ये बताएंगी जौहरी आँखें|

रचित पुस्तक ’ एक युद्ध शेष ‘ (ड्रामा) से…..


No comments:

Post a Comment