Wednesday, 1 January 2014

नूतन वर्ष - 2014





नया वर्ष हो मंगल मंगल गीत सुनाएँ|
भूल विगत को नए सृजन की राह दिखाएँ|

विह्स उठे मुरझाये चेहरे|
 भरे जख्म जो खाए गहरे|
बहुत हो गया खून खराबा|
बहुत हो गया काशी काबा|
घृणा बैर से दूर प्रेम का रस बरसाएं|
भूल विगत को नए सृजन की राह दिखाएँ|

पुनः चले विकास की आँधी|
 फिर से आये गौतम गांधी|
इश मोहम्मद साथ-साथ मिल,
नैय्या खेवें बनकर माझी|
नई डगर पथरीली राहें फिर भी कदम बढ़ाएं|
 भूल विगत को नए सृजन की राह दिखाएँ|

जनसंख्या विस्फोट न होवे|
अणुबम की अब चोट न होवे|
भूख प्यास से मरे न कोई|
आतंकी से डरे न कोई|
संसद अछरधाम खून से अब न नहाए|
भूल विगत को नए सृजन की राह दिखाएँ|

महलों को यह बात बताएं|
 झोपड़ियों को गये लगायें|
रात अँधेरी दिया जये पर
 सुख समृद्धि फैले घर-घर|
 दो हजार चौदह में चार बीन पर तान सुनाएँ|
भूल विगत को नए सृजन की राह दिखाएँ|

Wednesday, 30 October 2013

मनमीत मेरे हरगिज.......




मनमीत मेरे हरगिज होना कहीं न घायल
कहीं धूप की तपन है कहीं नीर भरे बादल।


सैलाब वक्त का है मज़बूर ज़िन्दगानी।
दरिया की रवानी है, आँखों में भरा पानी।
कहीं मौत का सन्नाटा, कहीं बज रही है पायल।
                        मनमीत मेरे हरगिज.....


दौलत की चाहतों में नीलाम फर्ज होता।
है बाढ़ कहीं धन की, कहीं बोझ कर्ज ढोता।
बरगद के बृक्ष  नीचे हरगिज न हो दबायल।
                        मनमीत मेरे हरगिज.....


अंधी दौड़ में दौड़ा है जा रहा जमाना।
है हर बशर नशे में, क्या होश का ठिकाना।
इस अर्थ युग में शब्दों का तार-तार आँचल।।
                        मनमीत मेरे हरगिज.....


ग़ुस्ता निगाहों में ये अक्स उभरते हैं।
सपनों के शीशमहल पे पत्थर क्यों उछलते हैं।
क्या चाहते दरिन्दे क्यों हो गए हैं पागल।

                        मनमीत मेरे हरगिज.....
Rachna- Kavi Rajeev Matwala

Tuesday, 29 October 2013

जीवन है इक ऐसा राही..........

जीवन है इक ऐसा राही, जिसकी मंजिल कोई नहीं।
पग-पग पर तूफान हजारों लेकिन साहिल कोई नहीं।।





इस पापी संसार ने हमको,
कदम - कदम पर लूटा है।
देखा था जो सुन्दर सपना,
वक्त के हाथों टूटा है।
उजड़ चुकी है दिल की बस्ती, प्यार की महफिल कोई नहीं।
जीवन है इक ऐसा राही, जिसकी मंजिल कोई नहीं।
           

जिसको-जिसको अपना समझा
उसने - उसने ठुकराया।
फेर लिया है सबने नज़रें
कोई न मेरे काम आया।
पागल मनवा जान ले इतना, प्यार के काबिल कोई नहीं।।
जीवन है इक ऐसा राही, जिसकी मंजिल कोई नहीं।


हाय कहाँ किस दर पर जायें
किससे अपना हाल कहें।
किससे माँगें प्रेम की भिच्क्षा
किससे दिल का राज कहें।
सबने मेरा खून किया है, फिर भी कातिल कोई नहीं।।
जीवन है इक ऐसा राही, जिसकी मंजिल कोई नहीं।

Tuesday, 15 October 2013

डोर सांसों की.....



डोर सांसों की टूटती भी नहीं।
जिन्दगी जैसी जिन्दगी भी नहीं।।

रूठा बैठा हूँ जिन्दगी से मैं।
जिन्दगी मुझसे रूठती भी नही।।

कोई हसरत न कुछ तमन्ना है।
आने वाली कोई खुशी भी नहीं।।

जिन्दगी रात है अमावस की।
और जख्मों में रौशनी भी नहीं।।

मौत सब पर है मेहरबां लेकिन।

मेरे बारे में सोचती भी नहीं।।

Thursday, 29 August 2013

यह देश बड़ा.......


यह देश बड़ा उपजाऊ है|
इसका हर भाग बिकाऊ है|
यह देश बड़ा.......


हत्या लूट कत्ल व्यभिचार| 
तुम भी कर लो आँखें चार|
कहाँ सो गए हो तुम यार| 
गली गाँव में चली बयार| 
जेब सदा भरते अपनी,
अफसर अधिकारी खाऊ हैं| 
यह देश बड़ा.......
ताश का पत्ता है जीवन| 
नहले पे दहला जीवन|
उबर उबर डूबता जीवन| 
सुबह शाम ढलता जीवन| 
प्यार के बाज़ार में,
गुलाब बड़ा महकाऊ है|
यह देश बड़ा.......
जफा का जबसे नाम हुआ|
वफा बड़ा बदनाम हुआ|
सबा का चर्चा आम हुआ|
बिना कत्ल इल्जाम हुआ|
जीवन के श्यामलपट पर,
झूठ नहीं छिपाऊ है|
यह देश बड़ा.......
वह सब कुछ कह जाता है|
बात झूठ गढ़ जाता है|
घूसा लात लगाता है|
फीस लूटकर खाता है|
शिक्षा अब बाज़ार हुई,
मंदिर यही दिखाऊ है|
यह देश बड़ा.......
कितने रोगी मर गए|
बोटी बोटी सड़ गए|
डर से आगे बढ़ गए|
जिंदगी से लड़ गए|
डॉक्टर की आँखों पर,
काला चश्मा टिकाऊ है|
यह देश बड़ा.......
सोया है थका गड़ेरिया|
खुला घूमता है भेड़िया|
अब न टूटेंगी बेड़ियाँ|
बांटों मत तुम रेवड़ियाँ|
देश गधे चर रहे,
लचर खड़ा काउ है|
यह देश बड़ा.......
अशफाक भगत तुम भी आओ|
आज़ाद तुम्ही कुछ कर जाओ|
आकर सुभाष पथ दिखलाओ|
हे अग्रदूत फिर आ जाओ|
आग लगी उपवन में,
कोई नही बुझौ है|
यह देश बड़ा.......
रचना - राजीव मतवाला
संकलित पुस्तक- 'स्वप्न के गाँव में' से

Sunday, 18 August 2013

वो देखो मनचली है....



जंगल में हवा चली है|
वो देखो मनचली है|


गाने लगा भ्रमर दल,
तू किस तरह कली है|

संध्या की स्वप्न माला,
क्यों आग में जली है|

अव्याहत अनुवाद देख,
याद में ढली है|

अब ताजगी मिलेगी, 
क्या देह संदली है|

अंदाज नया लगता,
तू धुप में जली है|

मैं तो तेरी ही जद में,
छाया स्वयं छली है|
रचनाकार :-राजीव मतवाला