Wednesday, 30 October 2013

मनमीत मेरे हरगिज.......




मनमीत मेरे हरगिज होना कहीं न घायल
कहीं धूप की तपन है कहीं नीर भरे बादल।


सैलाब वक्त का है मज़बूर ज़िन्दगानी।
दरिया की रवानी है, आँखों में भरा पानी।
कहीं मौत का सन्नाटा, कहीं बज रही है पायल।
                        मनमीत मेरे हरगिज.....


दौलत की चाहतों में नीलाम फर्ज होता।
है बाढ़ कहीं धन की, कहीं बोझ कर्ज ढोता।
बरगद के बृक्ष  नीचे हरगिज न हो दबायल।
                        मनमीत मेरे हरगिज.....


अंधी दौड़ में दौड़ा है जा रहा जमाना।
है हर बशर नशे में, क्या होश का ठिकाना।
इस अर्थ युग में शब्दों का तार-तार आँचल।।
                        मनमीत मेरे हरगिज.....


ग़ुस्ता निगाहों में ये अक्स उभरते हैं।
सपनों के शीशमहल पे पत्थर क्यों उछलते हैं।
क्या चाहते दरिन्दे क्यों हो गए हैं पागल।

                        मनमीत मेरे हरगिज.....
Rachna- Kavi Rajeev Matwala

Tuesday, 29 October 2013

जीवन है इक ऐसा राही..........

जीवन है इक ऐसा राही, जिसकी मंजिल कोई नहीं।
पग-पग पर तूफान हजारों लेकिन साहिल कोई नहीं।।





इस पापी संसार ने हमको,
कदम - कदम पर लूटा है।
देखा था जो सुन्दर सपना,
वक्त के हाथों टूटा है।
उजड़ चुकी है दिल की बस्ती, प्यार की महफिल कोई नहीं।
जीवन है इक ऐसा राही, जिसकी मंजिल कोई नहीं।
           

जिसको-जिसको अपना समझा
उसने - उसने ठुकराया।
फेर लिया है सबने नज़रें
कोई न मेरे काम आया।
पागल मनवा जान ले इतना, प्यार के काबिल कोई नहीं।।
जीवन है इक ऐसा राही, जिसकी मंजिल कोई नहीं।


हाय कहाँ किस दर पर जायें
किससे अपना हाल कहें।
किससे माँगें प्रेम की भिच्क्षा
किससे दिल का राज कहें।
सबने मेरा खून किया है, फिर भी कातिल कोई नहीं।।
जीवन है इक ऐसा राही, जिसकी मंजिल कोई नहीं।

Tuesday, 15 October 2013

डोर सांसों की.....



डोर सांसों की टूटती भी नहीं।
जिन्दगी जैसी जिन्दगी भी नहीं।।

रूठा बैठा हूँ जिन्दगी से मैं।
जिन्दगी मुझसे रूठती भी नही।।

कोई हसरत न कुछ तमन्ना है।
आने वाली कोई खुशी भी नहीं।।

जिन्दगी रात है अमावस की।
और जख्मों में रौशनी भी नहीं।।

मौत सब पर है मेहरबां लेकिन।

मेरे बारे में सोचती भी नहीं।।

Thursday, 29 August 2013

यह देश बड़ा.......


यह देश बड़ा उपजाऊ है|
इसका हर भाग बिकाऊ है|
यह देश बड़ा.......


हत्या लूट कत्ल व्यभिचार| 
तुम भी कर लो आँखें चार|
कहाँ सो गए हो तुम यार| 
गली गाँव में चली बयार| 
जेब सदा भरते अपनी,
अफसर अधिकारी खाऊ हैं| 
यह देश बड़ा.......
ताश का पत्ता है जीवन| 
नहले पे दहला जीवन|
उबर उबर डूबता जीवन| 
सुबह शाम ढलता जीवन| 
प्यार के बाज़ार में,
गुलाब बड़ा महकाऊ है|
यह देश बड़ा.......
जफा का जबसे नाम हुआ|
वफा बड़ा बदनाम हुआ|
सबा का चर्चा आम हुआ|
बिना कत्ल इल्जाम हुआ|
जीवन के श्यामलपट पर,
झूठ नहीं छिपाऊ है|
यह देश बड़ा.......
वह सब कुछ कह जाता है|
बात झूठ गढ़ जाता है|
घूसा लात लगाता है|
फीस लूटकर खाता है|
शिक्षा अब बाज़ार हुई,
मंदिर यही दिखाऊ है|
यह देश बड़ा.......
कितने रोगी मर गए|
बोटी बोटी सड़ गए|
डर से आगे बढ़ गए|
जिंदगी से लड़ गए|
डॉक्टर की आँखों पर,
काला चश्मा टिकाऊ है|
यह देश बड़ा.......
सोया है थका गड़ेरिया|
खुला घूमता है भेड़िया|
अब न टूटेंगी बेड़ियाँ|
बांटों मत तुम रेवड़ियाँ|
देश गधे चर रहे,
लचर खड़ा काउ है|
यह देश बड़ा.......
अशफाक भगत तुम भी आओ|
आज़ाद तुम्ही कुछ कर जाओ|
आकर सुभाष पथ दिखलाओ|
हे अग्रदूत फिर आ जाओ|
आग लगी उपवन में,
कोई नही बुझौ है|
यह देश बड़ा.......
रचना - राजीव मतवाला
संकलित पुस्तक- 'स्वप्न के गाँव में' से

Sunday, 18 August 2013

वो देखो मनचली है....



जंगल में हवा चली है|
वो देखो मनचली है|


गाने लगा भ्रमर दल,
तू किस तरह कली है|

संध्या की स्वप्न माला,
क्यों आग में जली है|

अव्याहत अनुवाद देख,
याद में ढली है|

अब ताजगी मिलेगी, 
क्या देह संदली है|

अंदाज नया लगता,
तू धुप में जली है|

मैं तो तेरी ही जद में,
छाया स्वयं छली है|
रचनाकार :-राजीव मतवाला

Sunday, 11 August 2013

गम के तारों ने.....

गम के तारों ने बुन डाला, मेरे मन का ताना बाना

आंसू दर्द जलन पीडा से है मेरा सम्बन्ध पुराना


 

कल तक मैं सबसे बेह्तर था आज बुरा हूँ दुनिया से

अब टूटेगा तार सांस का क्या बहार है क्या वीराना

 

दर्द बढा जब हद से आगे, पहुँच गया हूँ मैखाने में

साकी ने ही मुझको जाना, मेरे जख्मों को पहचाना

 

आज अँधेरी मेरी दुनिया, दूर बहुत है दूर उजाले

मुझको सांसों की गाड़ी पर पड़ा लाश का बोझ उठाना

 

कितने दिन और कितनी रातें, सावन आँखों में बरसा है

अब मैं हंसना भूल गया हूँ, मैं बंजारा मैं बेगाना

रचित पुस्तक गजल वाटिकासे…….


ले गई मेरी....

ले गई मेरी हर खुशी आँखें|

मेरे बारे में सोचती आँखें||


 

उसकी आँखों में आँखें मत डालो,

छीन लेती हैं रोशनी आँखें|

 

मेरी आँखों का सच न पड़ जाए,

उसकी खत की एबारती आँखें|

 

सुर्ख होते हैं किसके लान के फूल,

खून रोती है कौन सी आँखें|

 

शाम बुनती है रेशमी सपने,

सुबह करती है ख़ुदकुशी आँखें|

 

एक मुद्दत के बाद उभरा तो,

मुन्तजिर फिर मिली वही आँखें|

 

मेरा बातिन मुझे डराता है,

बंद करते ही जाहिरी आँखें|

 

कौन हीरा है कौन पत्थर है,

ये बताएंगी जौहरी आँखें|

रचित पुस्तक ’ एक युद्ध शेष ‘ (ड्रामा) से…..


तुमको शीशागरी.....

तुमको शीशागरी नहीं आती|
यूँ कहो जिंदगी नहीं आती|


एक हवेली की ओट पड़ती है,
मेरे घर रौशनी नहीं आती|

अपने अश्कों को रायगा न करो,
पत्थरों में नमी नहीं आती|

हम हमेशा दुआएं देते है,
क्या करें दुश्मनी नहीं आती|

रोज मिलते हो कैसे मिलते हो,
फासले में कमी नहीं आती|

मैंने देखा था आइना एक दिन,
अब किस पे हंसी नहीं आती|
रचित पुस्तक ’ एक युद्ध शेष ‘ (ड्रामा) से