जीवन
है इक ऐसा राही, जिसकी मंजिल कोई नहीं।
पग-पग
पर तूफान हजारों लेकिन साहिल कोई नहीं।।
इस
पापी संसार ने हमको,
कदम
- कदम पर लूटा है।
देखा था जो सुन्दर सपना,
वक्त
के हाथों टूटा है।
उजड़
चुकी है दिल की बस्ती, प्यार की महफिल कोई नहीं।
जीवन
है इक ऐसा राही, जिसकी मंजिल कोई नहीं।
जिसको-जिसको
अपना समझा
उसने
- उसने ठुकराया।
फेर
लिया है सबने नज़रें
कोई
न मेरे काम आया।
पागल
मनवा जान ले इतना, प्यार के काबिल कोई नहीं।।
जीवन
है इक ऐसा राही, जिसकी मंजिल कोई नहीं।
हाय
कहाँ किस दर पर जायें
किससे
अपना हाल कहें।
किससे
माँगें प्रेम की भिच्क्षा
किससे
दिल का राज कहें।
सबने
मेरा खून किया है, फिर भी कातिल कोई नहीं।।
जीवन
है इक ऐसा राही, जिसकी मंजिल कोई नहीं।
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