Tuesday 15 October 2013

डोर सांसों की.....



डोर सांसों की टूटती भी नहीं।
जिन्दगी जैसी जिन्दगी भी नहीं।।

रूठा बैठा हूँ जिन्दगी से मैं।
जिन्दगी मुझसे रूठती भी नही।।

कोई हसरत न कुछ तमन्ना है।
आने वाली कोई खुशी भी नहीं।।

जिन्दगी रात है अमावस की।
और जख्मों में रौशनी भी नहीं।।

मौत सब पर है मेहरबां लेकिन।

मेरे बारे में सोचती भी नहीं।।

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