Friday 14 June 2013

आजा नजरों में.....

आजा नजरों में इस तरह कोई खबर न हो|
मुझे इक रात संवार दे फिर सहर न हो|


सहमी नजरों में ख्वाब कोई जगा दे आकर,
खुद मेरी आरजू कि कोई टहर न हो|

बस नजर अपनी आईने की ओर मोडो तुम,
दिल भले तार तार कर दो पर पहर न हो|

जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले,
किसी की जिंदगी में इस तरह कहर न हो|

डूबना आँखों में तेरी बहुत अच्छा लगा,
हम नहाते रहे भले कोई लहर न हो|

और वो तुम ही क्या जिसमें न हम दिखाई दें,
साथ में उम्मीद पली है भले जहर न हो|
रचना-राजीव मतवाला, ‘गज़ल वाटिका’ से संकलित

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